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ज़िहादी मानसिकता से लड़ना होगा-आतंक से मुक्ति हेतु

प्रेमयुद्ध
प्रेमयुद्ध
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भारत सरकार ने लोगों की जान का मजाक बना दिया है चन्द रुपए देकर हर सरकार अपनी ज़ुम्मेदारी से अलग हो जाती है कभी सोचा है की जिन की जान जाती है चाहे वो बलात्कार के करण या फिर आतंक बाद के करण उनके परिवार पर क्या असर पड़ता है शीसे के आफीसों में बैठ कर बहेश करबाते हैं मीडिया बाले मेन जो ज़ड़ है उस पर तो कोई बोलता ही नही है हर कोई आतंकबाद से लड़ने के लिए पाकिस्तान को दोष देता है
की इसमे पाकिस्तान का हाथ है सारी योजनायें पाकिस्तान मे बनी है  अरे भई कितना लम्बा हाथ उनका जो बार 2 हमारे घर तक पहुंच जाता है और हम उस हाथ को काट नही सकते हैं बार 2 पाकिस्तान को दोष देना कितना उचित है यह तो बही बात हुई की घर ना रखावै आपनो चोर को गारी दे , जब हम मजबूत नही होंगे तो दुसमन तो हमला करेगा ही , सरकार बोट बैंक के लिए अंधी है तो मीडिया पैसे के लिए अंधी है और जनता रोटी के लिए अंधी है जनता का अंधा होना ज़ायज़ है पर मीडिया का अंधा होना ज़ायज़ नही है ना ही सरकार का अंधा होना स्वीकार्य है .
हमे बहुत अच्छी तरह से याद रखना होगा की अगर हम बार 2 पाकिस्तान को दोषी मान कर अपनी जिम्मेदारी टालते रहेंगे तो हमारा हाल और भी जादा बुरा होगा और देश तबह हो सकता है अगर हम किसी को गलती के लिए सुधारने को कहते हैं तो हमे पहले अपने को सुधारना होगा अगर हम ऐसा नही करते है तो दूसरा सुधारने की जगह खुन्नश मे और भी जादा खूंखार और बिगड़ जायेगा और ऐसा ही हो रहा है
नोट : में अपने मुस्लिम भाईओं से अनुरोध कर रहा हून की मेरी बातो को बुरा ना माने एक बार शांत मन से सभी बातों पर गौर करें और बिचार करें ,में हर मजह्व का सम्मान करता हूँ पर जो बुराईन हैं उनेह छुपाने से मजहब की हानि होती है और एही इस्लाम के साथ भी हो रहा है में खुद भी कहता हून की धरम परिवर्तन किसी समसया का समाधान नही है पर हन अंतिम रास्ता ज़रूर होता है अपने आपको उस समस्या से अलगा करने का ,इसलिए मुस्लिम बन्धु खास कर इस पर विचार अवस्‍या करें
1- भारत मे हमले की योजनायें भले ही पाकिस्तान मे वन्ती है पर उनका पालन 90% तक भारत मे होता है
2-जो लोग इन योजनायों पर काम करते है उनकी मदत करने बाले 100% भारतीए होते है इसलिए भारतीए पाकिस्तानियों से ज़ादा दोषी है
3-जो लोग मदत करते है  वो मुस्लिम ही क्यू होते है ?( सभी नही जो भी होते है )
4-अगर मुस्लिम होते है तो वो क्यू होते है क्या बजह है की एक मुस्लिम पड लिख कर भी आतंक मे लिप्त बड़ी आसानी से हो जाता है?
5- जो लड़के आतंकी गतिविधिओं मे लिप्त होते हैं उनकी मानसिकता ऐसी होती है की वो ज़िहाद पर अपने जान से भी जादा भरोषा करते है (कुछ लोग कह सकते है की कुछ अत्याचारों के कारण वन्ते ,पर ऐसा नही है किओंकी पूरी दुनिया मे और भी कई कौमे और जातियाँ है जिन पर अम�������������������नविए ज़ुल्म होते है पर वो सभी इतने घटक आतंकी नही वन्ते है अगर वन्ते हैं तो अपना मकसद पूरा होने पर अपने बुरे अस्तित्व को मिटा देते हैं पर मुस्लिमो के साथ ऐसा क्यू नही होता है कंही उनका मकसद दारुल इस्लाम तो नही है जो शायद कभी संभव नही है और उसी के प्रयास मे लगातार आतंकबाद चल रहा है )
6-जिन लड़कों की मानसिकता ऐसी होती है तो वो क्यू होती है इसके लिए कौन ज़िम्मेदार है समाज,मजहव,या फिर परिवार ,आखिर कौन है जो इन मासूम बच्चों की मानसिकता ऐसी कर देता है जो बे ज़िहाद के सामने और किसी को कुछ नही समझते हैं
7-मजह्व : वैसे  में इस्लाम के बारे बहुत कुछ जानता हून ज़मीनी भी और किताबी भी पर में उनका उल्लेख नही करूंगा पर इतना कह सकता हूँ की इस्लाम आतंक के लिए जिम्मेदार नही है अगर कोई मजहव आतंक के लिए ज़िम्मेदार होता तो उसके 100% लोग  आतंकी होते पर ऐसा नही है कुछ चन्द लोग ही आतंकबाद को सही मानते हैं ,पर इस्लाम के कुछ नियम ऐसे ज़रूर है जिनसे बच्चों की सोच निगेटिव हो जाती है
8-मुस्लिम समाज(कठमुल्लाबाद) ; मुस्लिम समाज की जितने भी भाग है हर भाग मे कट्टरता कूट 2 कर भरी हुई है और कुछ लोग अपनी दुकाने चलाने के लिए ठेके दार बन बैठे है और भोले भाले लोगों को अपने अनुसार जीने के लिए मजबूर करते है अगर कोई नही मानता है तो फतवे के दुआरा उसका जीवन नरक बना देते है कठमुल्लाबाद ही आतंकबाद की मुख्य ज़ॅड है जो मासूमों की सोच को निगेटिव और अपाहिज़ बना देते है उनके सकारात्मक विवेक को खतम कर देते हैं
9- परिवार : कोई भी परिवार या माता पिता अपने बच्चों को अपराध करते नही देखना चाहता है पर ज़िहाद को एक धार्मिक कर्तव्य बना कर कठमुल्ले पेश करते है और बच्चों के दिमाग को इतना ब्रेंन बाश किया जाता वो भी सका रात्मक तरीके ,अगर कोई परिवार अपने बच्चों को अपने तरह से पालना चाहें तो कोई भी कठमुल्ला फतवा के दुअरा उस परिवार का ही बहिष्कार कर देता है एह फतवा बड़े  शहरों के कुछ अमीरों पर तो वे असर होते है पर छोटे शहरों के अमीर से अमीर परिवार को भी अलग तलग कर देते है तो सामान्य गाव  के गरीव परिवारों की विसात ही क्या है अगर कोई लड़का या लड़की अपनी इच्छा से जीवन जीना चाहते है तो परिवार ही मजहव की दुहाई दे कर उसका बहिस्‍कार कर देते है फिर वो करे तो क्या करे इसलिए अच्छे लोग कुछ भी करने मे असमर्थ हैं अब रही बात परिवार की भूमिका की बच्चों की मानसिकता को निगेटिव बनाने मे तो परिवार ही सबसे जादा दोषी है
आ) जनम से लेकर जवानी तक बच्चे की देख रेख की ज़िम्मेदारी परिवार की ही होती है और वो करता भी है पर वो बही करता है जो कठमुल्ले चाहते है और करबाते हैं जबकि परिवार इसे मना भी कर सकते है
ब) कोई भी कठमुल्ला किसी परिवार पर हमेशा नज़र नही रख सकता है फिर भी यह लोग अपनी मर्जी से ऐसा करते है की बच्चों की सोच निगेटिव हो जाती है
10- वो कारण जिसकी बजह से बच्चों की सोच निगेटिव होती है
हम सबसे पहले बताते हैं की आदमी की सोच एक जगह पर जा कर अच्छा बुरा सोचने मे असमर्थ जाता है और बही ���र���ा है ज�� उ���क��� दिमाग मे बैठ जाता है
कारण : किसी भी चीज से अति प्रेम और अति नफरत
1-अति प्रेम जो की इंसान को अंधा कर देता है
मुस्लिम अपने बच्चों मे इस्लाम के प्रति अति प्रेम भर देते हैं जो की उनकी सोच को घातक बना देते हैं
आ) जिस प्रकार एक प्रेमी किसी प्रेमिका को बिस्वास दिलाने हेतु की वो ही सबसे जादा उससे प्रेम करता है कभी 2 अपनी जान तक दे देता है ठीक वैसे ही बच्चों मे इतना अंध प्रेम पैदा किया  जाता है की वो इस्लाम के लिए कुर्बान होने को तत्पर रहते हैं और किसी दूसरे को किसी भी हद तक नुकसान पहुँचा सकता है इतना ही नही अगर किसी को ऐसा लगे की वो जिससे प्रेम करता है उसके प्रति ही उससे कुछ गलत हो गया है तो वो उसे विस्वास दिलाने के किसी भी हद तक अपने को नुकसान  कर सकता है  ठीक इसी प्रकार रसूल की सान मे कोई गुस्टाकी हो जाये तो लोग अपने आपको मारने से भी नही चूकते हैं
2-गैरो के प्रति अति नफरत इसके कई कारण है में येन्हा पर किसी भी किताव का उधारण नही दूंगा किओंकी फिर बात किताबों मे सिमट कर ही रह जाती है
आ) अपने को दूसरों से अलग समझना
1-बच्चों का खतना करना : ऐसा इसलिए होता है लिए पूरी जिंदगी बच्चा अपने को       सभी गैर मुस्लिमों से अलग समझे और ऐसा होता भी है
ब) दूसरों को हीन(कम) समझना
इसके लिए कई झूंट बच्चों को बताये जाते हैं जैसे
1-क़ुरान आसमानी किताब है
2-इस्लाम सबसे अच्छा और पुराना मजहब है
3-सारे मजहब इस्लाम से निकले है
4-मोहमद सबसे आखरी और प्यारे नबी थे
5-गैर मुस्लिम काफ़िर हैं और भरोशे और प्रेम के पात्र नही हैं
6-तकरीर के मध्यम से मुस्लिम और गैर मुस्लिम मे इतना अंतर
बताना की इंसानियत की हर हद ही पार कर दी जाती है
7-एक मुस्लिम किसी गैर मुस्लिम से विवाह नही
कर सकता जब तक वो इस्लाम कबूल ना करले
8-काफ़िर का कत्ल ज़ायज़ है
स) अपने को ही सर्वोपरि समझना
1-मात्र अरवी भाषा को ही धार्मिक भाषा समझना
2-दूसरों के संस्कारों का सम्मान नही करना
( योगा का बहिस्‍कार,सूर्य नमस्कार,हाथ जोड़कर प्रार्थना,राष्ट्रधज़,बंदेमातरम का बहिष्कार)
जब की  इन सबका धर्म से कोई भी सम्बंध नही होता है बड़ी आज़ीव बात है मुस्लिमों को छोड़कर ,हिन्दू,सिख,जैन,फ़ारसी,ईसाई कोई भी विरोध नही करता है मुस्लिम ही क्यू ऐसा करते है जब सब पालन करते हैं तो आपको पालन करने मे क्या तकलीफ है अगर इस परकार की हरकतें होंगी जिन से एह स्वॅम ही अपने को बाकी दुनिया से अलग करने की कोसिश करते हो तो फिर दूसरे आपमें अंतर किस आधार पर नही करेंगे ,आपकी ऐसी हरकटेई ही आपको दूसरों  से अलग समझने के लिए लोगों को मजबूर करती हैं
द) अच्छाई और बुराई मे अंतर समझने के लिए इंसान की सोच को कुन्ध कर देना
1-कोई भी बच्चा अपने दिमाग का इस्तमाल ना कर सके इसके लिए हर चीज मे हलाल और हराम नियत कर दिए हैं वो भी इतने गलत कीकोई भी इंसान उचित नही कह सकता है
जैसे : जानवरों की हत्या मे ,कुछ जीवों की हत्या ज़ायज़(हलाल) है और कुछ की हत्या हराम है जबकि कोई भी इंसान किसी भी जीव की हत्या(अकारण) को सही नही कह सकता है अगर कहता है तो उसके अंदर 1% भी इंसानियत नही हो सकती है सभी गैर मुस्लिमों को इस्लाम का शत्रु और नुकसान दायक घोषित समझना
विशेष : हिन्दू धर्म मे हर रकचश को शत्र��� या निन्दा का पात्र नही है रावाण का अंत उसके बुरे कर्मों और अहेंकार के कारण हुआ ना की उसकी जाती के कारण और राम ने उनका राज नही छीना किसी भी रक्चस को उसकी जाती नही उसके बुरे कर्मो के करण मारा गया और उनके राज पाठ को नही छीना गया सिर्फ इंसानियत कायम की गई थी
बच्चों को भी रकचसों या किसी बिशेष जाती के प्रति नफरत पैदा नही की जाती है और बच्चों के दिमाग को संतुलित करने को कहा जाता है ही रकचास के घर देवता और देवता के घर रकचास पैदा हो सकता है कोई भी मनुष्य अपने कर्मो से रकचास या देवता वनता है और एह स��्या ���ी है
पर मुस्लिम समाज मे इसका उल्टा है गैर मुस्लिम (काफ़िर) किसी हालत मे संममानिए और इंसान नही है और वो भगबान के दुआरा दंड का पात्र है
उपाय ;
नोट —- उपाय बताने से पहले एक बात पर हर हिन्दू मुस्लिम को गंभीरता से सोचना होगा
भारत एक बिसाल देश है और हर जगह ,हर समय,���र इंसान क�� सूर���छ��� ना तो सरकार कर सकती है ना ही पुलिस किओंकी आतंकबाद की जड एक सोच है जो की कभी भी जीवित होकर ज़िहादी का रूप धरण कर लेती है और परिणाम आतंकी हमले के रूप मे सामने आते हैं पुलिस और सरकार की तीव्र सक्रियता उन लोगों को तो रोक सकती है जिनके अंदर मौत का डर या सज़ा का ड़र हो पर कुछ लोग ऐसे भी है जो अपनी जान भी देने को तत्पर रहते है उनेह कैसे रोका जा सकता है अगर कोई बम सरीर से बाँध कर भीड़ मे कूद जाये तो क्या कोई कुछ कर पायेगा शायद नही ,इसी तरह कुछ तकनीकी ऐसी है जिनके मध्यम से कोई अपने घर पर बैठ कर दूसरी जगह बम प्लांट करके विशफोट कर सकता है इनेह रोकना बहुत ही मुस्किल है इन की जड है वो कुंठित सोच जिसका विवरण मैने उपर दिया है
में बताना चाहता हू की इस तरह की सोच सीधे 2 किसी को ज़ुर्म करने को जिम्मेदार नही होती पर बहुत जल्दी उकसावे मे आकर अपनी चरम पर पहुंच जाती है ज़िहादी बन ज़ाती है कुछ चीजें है जो उत्प्रेरक का काम करती हैं
ऋणात्मक उत्प्रेरक (जो सुधार की संभावना को कम करता हो)
1-फ़तवा : छोटे स्तर पर संभावित सुधारों को रोकने का कठोर नियम है
2-औरतों पर जुल्म : हर समाज मे, परिवारमे,और बच्चों को संस्कारी विवेक शील बनाने के लिए नारी जाती की सोच और आज़ादी बहुत महेत्व रखती है पर इस्लाम मे औरतों पर होने बाले अत्याचारों का वर्दन असंभव है साथ ही उनकी सोच तो सिर्फ बच्चे पैदा करने तक ही सीमित कर दी गई है जब औरत खुद ही आज़ाद नही है तो बच्चे की सोच को सॉफ और पाक कैसे बना सकती है
3- बुरखा : एह औरतों को ग़ुलाम रखने का सकारात्मक तरीका है जिसे धार्मिक रूप देकर औरतों के लिए बुरखे मे रहना अनिवार्य संस्कीरति कर दी गई है
धनात्मक उत्प्रेरक ( निगेटिव सोच को तीव्र करता हो )
3-ज़िहाद : बड़े स्तर पर होने बाले परिवर्तन के खिलाफ पूरा हिंसक और अहिंसक आन्दोलन है पर साथ मे हर मुस्लिम के लिए अनिबार्य भी है
4-मदरसा पद्दती : ज़िहाद के लिए उत्प्रेरक का काम करते है
5-तकरीर : इंसान की सोच को कुन्ध और विवेक हीन के साथ 2 ज़िहादी बनने के लिए उत्प्रेरक का काम करती है एक मौलबी जितने बाकय बोलता है हर बात मे हम मोमिन और वो काफ़िर जैसे शब्दों का प्रयोग आम बात है साथ मे तमोगुण का भरपूर प्रदर्शन किया जाता है जिसभाई ने तकरीर सुनी होगी उसे बहुत अच्छी तरह से पता होगा
6-तुष्टिकरण : तुष्टिकरण सवसे तीव्र उत्प्रेरक है अपराध के लिए जिस समाज धर्म या जाती या वर्ग का तुष्टिकरण होता है वो अपराध करना अपना अधिकार समझता है प्राचीन काल ��े मनुब���दिओं ने दलितों पर ज़ुल्म किए किओंकी शासक वर्ग ने उनका तुष्टिकरण किया था आज वोट बैंक के लिए मुस्लिम तुष्टिकरण अपनी चरम पर है जिसके कारण देश विरोधी तागतें प्रबल होती ही जा रही है तुष्टिकरण पर रोक लगनी चाहिए आज भले ही मुस्लिम भाईओं को बुरा लगेगा पर समय के साथ जब उनमे सकारात्मक परिवर्तन होंगे तो उने स्वता अहसास हो जायेगा, जैसे आज मनुबादिओं को भी अहसास है.
Needful actions
1-तुष्टिक���ण को ��तम कर���े का एक ही उपाय है , जात,वर्ग,धरम को कानूनी रूप से बैन क�� दिया जाये ,किसी भी सरकारी गैर सरकारी काम मे इन चीजों का लिखना भी दनडनिए अपराध हो , सब सिर्फ भारतीए हों और हर सुविधा सिर्फ गारीवी के आधार पर ही मिलनी चाहिए अगर जल्दी ऐसा नही होता है तो जांच टीम म�� कुछ मुस्लिम अफसर ज़रूर होने चाहिए ताकि मुस्लिमो को ऐसा ना लगे की इनके साथ जांच मे भेद हो रहा है और वो सरकारी करवाही पर पूर्ण विस्वास कर सकें
2-मीडिया को जाग कर निस्पक्छ रूप से देश और जनता को ध्यान मे रख कर काम करना चाहिए ,पैसे की चाहत मे इतने अन्धे सेक़ुलर बनकर एकतरफा बातें ना रखे ज़रा सोचो जिन बच्चों के लिए पैसे की खातिर अन्धे सरकारी भक्त बने हैं जब बच्चे ही सुरकचित ना हो तो उस पैसे का क्या फायदा होगा किओंकी नेता और उनके बच्चे तो पूर्ण सुरकचित हैं पर हमारे और आपके नही ,सरकार के भक्त बनने से अच्छा है देश भक्त बने
3-पोटा जैसा कानून बने और सरकारी तंत्र और सूरकछा तंत्र पूर्ण सतर्क हमेसा रहे तकनीकी को विकसित किया जाय
4-जनसंख्या पर तुरंत पूर्ण रूप से रोक लगे
5-हमारे देश के मुस्लिम बुद्धिजीविओं को इस ज़िहादी मानसिकता के खिलाफ खुलकर खड़ा होना होगा तभी सोच मे बदलाव संभव है अगर कोई गैर मुस्लिम सही विरोध भी करे तो उसे काफ़िर करार दे कर उसकी बात को नज़र अंदाज़ कर दिया जाता है और उल्टे उसे अपना शत्रु समझ लिया जाता है किओंकी यह लोग इस बात को नही जानते है अगर किसी का कोई सही हमदरद होता है तो वो आलोचक होता है किओंकी वो आलोचना तब करता है जब उसे किसी की बुरी चीज से दुख होता है और वो उसे दूर करना चाहता है याद रखे जो दुसमन होता है या वास्तव मे बुरा चाहने बाला होता है वो आलोचना नही करता बल्कि षड्यंत्र करता है आलोचना तो सुधार हेतु होती है इसलिए उसे स्वीकार करना अच्छा होता है
6-जो गैर मुस्लिम बर्ग है उसे मजबूरन आगे आना होगा किओंकी मुस्लिम वर्ग फतवे की मार से बहुत डरता है बड़े से बड़े स्माज सुधारक जो मुस्लिम है फतवे के सामने नही टिक पाते है इसलिए गैर मुस्लिमों को भी मुस्लिमों का साथ देना होगा और खुद भी आलोचना करनी होगी और जो मुस्लिम सुधारक है उनका संरकछन करना होगा बड़ी ही लानत की बात है भारत के लिए की एक लेखिका तस्लीमा नसरीन की रक्छा नही कर सका
7-मुस्लिम औरतों को हर कीमत पर आगे आना होगा :
किसी भी समाज की रीड औरत होती है अगर वो रीड ही कमजोर होगी तो वो समाज कभी सुधार नही सकता है औरतों को हर प्रकार की छूट और आज़ादी होनी चाहिए सरकार कुछ ऐसा करे की छोटे से भी अपराध पर ��ठोर सज़ा हो ,बुरखा और फतवे पर पूर्ण रूप से बैन लगे ,
8-नारी संघटन आगे आयें : भारत मे नारी संघटन बहुत ही कमजोर है और महिला आयोग तो जैसे है ही नही ऐसा लगता है इन सब को सोचना होगा की सिर्फ हिन्दू औरतों के आज़ाद होने से भारत सुसंस्कृत नही हो जायेगा जब तक मुस्लिम औरतें ग़ुलामो की तरह जीती रहेंगी तब तक कुछ भी ठीक नही होने बाला है और ना ही संतुलित होने बाला है इसलिए नारी संघटानो का सक्रिय होना बहुत ज़रूरी है एक देश मे नारीओं के लिए अलग 2 कानून क्यू , हर कानून को समान बनाना होगा और उनका पालन भी समान रू�� से करना होगा
नोट : सभी पाठकों से अनुरोध है की धार्मिक किताबों से रिफरेंस देने से बचें और मनोविग्यान के आधार पर सिर्फ अपनी सोच से कुछ सुझाव देने की किरपा ज़रूर करें की किस प्रकार इस ज़िहादी मानसिकता से लड़ा जा सकता है और अपने मुस्लिम भाईओं को इस आग से बचाया जा सके किओंकी जब तक ज़िहादी मानसिकता जिंदा है कोई भी योजना आतंकबाद को खतम नही कर सकती है

ज़िहादी मानसिकता से लड़ना होगा-आतंक से मुक्ति हेतु

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